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भारत निर्वाचन आयोग

परिचय

भारत, शासन की संसदीय प्रणाली के साथ एक संवैधानिक लोकतंत्र है, और इस प्रणाली के केन्द्र में नियमित, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचनों को आयोजित करने के प्रति प्रतिबद्धता है। ये निर्वाचन सरकार की संरचना, संसद के दोनों सदनों, राज्यो एवं संघ राज्य-क्षेत्र की विधान सभाओं की सदस्यता, और राष्ट्रपतित्व एवं उप-राष्ट्रपतित्व का निर्धारण करते हैं।

निर्वाचन, संवैधानिक उपबंधों, जिनका संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के द्वारा अनुपूरण किया जाता है, के अनुसार संचालित किए जाते हैं। प्रमुख कानून हैं-लोक प्रतिनिधित्वक अधिनियम, 1950, जो मुख्यतया निर्वाचक नामावलियों की तैयारी एवं पुनरीक्षण से सबंधित हैं, लोक प्रतिनिधित्व‍ अधिनियम, 1951 जिसमें निर्वाचनों के संचालन और निर्वाचन उपरांत विवादों के सभी पहलुओं का विस्तृत विवरण है। भारत के उच्चतम न्यांयालय ने अभिनिर्धारित किया है कि जहां निर्वाचनों के संचालन में किसी दी गई स्थिति से निपटने के लिए अधिनियमित कानून चुप है या अपर्याप्ता उपबंध किए गए हैं तो निर्वाचन आयोग के पास उपयुक्त तरीके से कार्रवाई करने के लिए संविधान के अधीन अवशिष्ट शक्तियां हैं।

निर्वाचन-क्षेत्र एवं सीटों का आरक्षण
देश को 543 संसदीय निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिनमें से प्रत्येक संसद के निचले सदन, लोक सभा के लिए एक सांसद को निर्वाचित करता है। संसदीय निर्वाचन-क्षेत्रों के आकार एवं बाह्यरूप का एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग द्वारा निर्धारण किया जाता है जिसका उद्देश्य ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों का गठन करना होता है जिनमें भौगोलिक विचारणीयताओं और राज्यों एवं प्रशासनिक क्षेत्रों की सीमाओं के अधीन मोटे तौर पर एक समान आबादी हो।

संसद

संघ की संसद राष्ट्रपति, लोक सभा और राज्य सभा से बनी होती है। राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होते हैं, और वे प्रधानमंत्री को नियुक्त करते हैं जो लोक सभा की राजनीतिक संरचना के अनुसार सरकार चलाते हैं। हालांकि, सरकार की अध्यक्षता प्रधान मंत्री द्वारा की जाती है फिर भी, मंत्रिमंडल निर्णय लेने वाला केन्द्रीय निकाय होता है। एक से अधिक दल के सदस्य सरकार बना सकते हैं, और हालांकि, शासक दल लोक सभा में अल्प मत में हो सकते हैं फिर भी, वे केवल तभी तक शासन कर सकते हैं जब तक कि उन्हें सांसदों, जो लोक सभा के सदस्य हैं, के बहुमत का विश्वास प्राप्तं होता है। लोक सभा, वह निकाय होने के साथ सरकार कौन बनाए, राज्य सभा के साथ मुख्य विधायी निकाय है।

राज्य सभा

राज्य सभा के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित किए जाते हैं न कि समस्त नागरिकों के द्वारा अधिकतर संघीय प्रणालियों के उलट प्रत्येक राज्य द्वारा निर्वाचित सदस्यों की संख्या कमोबेश उनकी आबादी के अनुपात में होती है। वर्तमान में, विधान सभाओं द्वारा राज्य सभा के 233 सदस्य निर्वाचित किए जाते हैं, और राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला एवं सामाजिक सेवाओं के प्रतिनिधियों के रूप में बारह सदस्य भी नामित किए जाते हैं। राज्य सभा सदस्य छह वर्षों के लिए सेवा दे सकते हैं, और प्रत्येक 2 वर्षों में एक तिहाई विधान सभा निर्वाचित होने के साथ निर्वाचन सांतरित होते हैं।

नामित सदस्य

राष्ट्रपति यदि यह महसूस करते हैं कि आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है तो वे लोकसभा के 2 सदस्यों को नामित कर सकते हैं, और साहित्य, विज्ञान, कला एवं सामाजिक सेवाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए राज्य सभा के 12 सदस्यों को नामित कर सकते हैं।

राज्य विधान सभाएं

भारत एक संघीय देश हैं, और संविधान राज्यों एवं संघ राज्या-क्षेत्रों को अपनी स्वयं की सरकार के ऊपर उल्लेंखनीय नियंत्रण का अधिकार देता है। विधान सभाएं (विधायी सभाएं) भारत के 28 राज्यों में सरकार का प्रशासन सम्पांदित करने के लिए स्थाापित प्रत्यवक्ष रूप से निर्वाचित निकाय होती हैं। कुछ राज्यों में, ऊपरी एवं निचले दोनों सदनों के साथ विधान-मंडलों के द्विसदनीय संगठन हैं। सात संघ राज्यो-क्षेत्रों में से दो नामत:, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली और पांडिचेरी में भी विधान सभाएं हैं।

विधान सभाओं के निर्वाचन, राज्योंं और संघ राज्य-क्षेत्रों को एकल-सदस्यी्य निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित कर दिए जाने के साथ, लोक सभा निर्वाचन की ही तरह निष्पा दित किए जाते हैं। इसमें भी सबसे आगे रहने वाली निर्वाचन प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है। विधान सभाएं, आबादी के अनुसार, अलग-अलग साइज में होती हैं। 403 सदस्यों के साथ, उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी विधान सभा है:, 30 सदस्योंं के साथ पांडिचेरी सबसे छोटी विधान सभा है।

राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति

राष्ट्रपति विधान सभाओं, लोक सभा, और राज्य सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं, और 5 वर्ष की अवधि के लिए काम करते हैं (हालांकि वे पुनर्निर्वाचन के लिए खड़े हो सकते हैं)। मतों का आवंटन करने के लिए एक फार्मूले का उपयोग किया जाता है ताकि प्रत्येक राज्य की आबादी और एक राज्य के विधान सभा सदस्य कितनी संख्या में मत डाल सकते हैं, के बीच संतुलन बना रहे, और राज्य विधान सभा सदस्यों और राष्ट्रीय संसद के सदस्यों के बीच एक समान संतुलन मिले। यदि किसी भी अभ्यर्थी को अधिसंख्य मत नहीं मिले तो एक प्रणाली है जिसके द्वारा हारने वाले अभ्यर्थी स्पर्धा से बाहर हो जाते हैं और उनके मत अन्य अभ्यर्थियों को तब तक अंतरित होते रहते हैं जब तक कि एक अभ्यर्थी बहुमत न प्राप्त कर ले। उप-राष्ट्रपति लोक सभा और राज्य सभा के निर्वाचित एवं नामित सभी सदस्यों के प्रत्यक्ष मत के द्वारा निर्वाचित होते हैं।

कौन मतदान कर सकता है?

भारत मे लोकतांत्रिक प्रणाली सर्वसुलभ वयस्क मताधिकार के इस सिद्धांत पर आधारित है; कि 18 साल की आयु का कोई भी नागरिक निर्वाचन में मत डाल सकता है (1989 के पहले आयु सीमा 21 वर्ष थी)। मत देने का अधिकार जाति, पंथ, धर्म या लिंग का लिहाज किए बिना है। जो लोग विक्षिीप्त दिमाग के माने जाते हैं, और जो कतिपय आपराधिक अपराधों में दोष-सिद्ध किए गए हैं, उन्हें मत देने की अनुमति नहीं है।

निर्वाचन-क्षेत्र एवं सीटों का आरक्षण

देश को 543 संसदीय निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिनमें से प्रत्येक संसद के निचले सदन, लोक सभा के लिए एक सांसद को निर्वाचित करता है। संसदीय निर्वाचन-क्षेत्रों के आकार एवं बाह्यरूप का एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग द्वारा निर्धारण किया जाता है जिसका उद्देश्य ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों का गठन करना होता है जिनमें भौगोलिक विचारणीयताओं और राज्यों एवं प्रशासनिक क्षेत्रों की सीमाओं के अधीन मोटे तौर पर एक समान आबादी हो।

निर्वाचन तंत्र

लोक सभा के निर्वाचन सबसे आगे रहने वाले निर्वाचन तंत्र का उपयोग करके सम्पन्न किए जाते हैं। देश पृथक-पृथक भौगोलिक क्षेत्रों में बंटा हुआ है जिन्हेंे निर्वाचन-क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, और निर्वाचकगण एक अभ्यर्थी के लिए एक मत दे सकते हैं (यद्यपि अधिकतर अभ्यर्थी निर्दलीयों रूप में खड़े होते हैं फिर भी, सर्वाधिक सफल अभ्यर्थी राजनीतिक दलों के सदस्यों के रूप में खड़े होते हैं, विजेता वह अभ्यर्थी होता है जिसे सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं

मतदान दिवस

मतदान सामान्यता भिन्न्-भिन्न निर्वाचन-क्षेत्रों में अलग-अलग दिनों में आयोजित किए जाते हैं ताकि सुरक्षा बल तथा निर्वाचन के अनुवीक्षण-कर्ता कानून एवं व्य्वस्था बनाए रखने में सक्षम हो सकें और निर्वाचन के दौरान निष्पक्ष मतदान कराया जाना सुनिश्चित किया जा सके।

मतपत्र तथा प्रतीक

अभ्यर्थियों के नाम-निर्देशन की प्रक्रिया पूरी हो जाने के पश्चात, रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों की एक सूची तैयार की जाती है तथा मतपत्र मुद्रित किए जाते हैं। मत-पत्र अभ्यर्थियों के नामों (निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित भाषाओं में) और हर एक अभ्यर्थी को आबंटित प्रतीकों के साथ मुद्रित किए जाते हैं। मान्यता-प्राप्तत दलों के अभ्यर्थियों को उनके दलीय प्रतीक आबंटित किए जाते हैं।

मतदान किस प्रकार होता है

मतदान गुप्त मतपत्र के द्वारा होता है। मतदान केन्द्र साधारणतया सार्वजनिक संस्थानों जैसे स्कूलों तथा सामुदायिक भवनों में स्थापित किए जाते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि यथासंभव अधिक से अधिक निर्वाचक मतदान करने में सक्षम हो सकें, निर्वाचन आयोग के अधिकारी इस बात की कोशिश करते हैं कि प्रत्ये क मतदाता से 2 कि.मी. के भीतर एक मतदान केन्द्र हो तथा यह कि किसी भी मतदान केन्द्र में 1500 से अधिक मतदाता न हों। प्रत्येक मतदान केन्द्र निर्वाचन के दिन कम से कम 8 घंटे के लिए खुला रहे।

मतदान केन्द्र में प्रवेश करने पर निर्वाचक की निर्वाचक नामावली के प्रति जांच की जाती है तथा एक मतपत्र आबंटित किया जाता है। निर्वाचक मतदान केन्द्र में एक स्क्री न्डथ कम्पार्टमेंट के भीतर अपने पसन्द के अभ्यार्थी के प्रतीक पर या उसके समीप मतपत्र पर रबड़ की मुहर लगाकर मतदान करता है। तब मतदाता मतपत्र को मोड़कर एक सामान्यक मत पेटी में डाल देता है, जो पूरी तरह पीठासीन अधिकारी तथा अभ्यरर्थियों के मतदान एजेंटों की नजरों के सामने किया जाता है। मुहर लगाने की इस प्रक्रिया से मत पत्रों को मतदान केन्द्र से नजर बचा कर निकाले जाने तथा मतपेटी में नहीं डाले जाने की संभावना दूर हो जाती है।

आयोग ने 1998 से, मतपत्रों के बजाय इलेक्ट्रॉयनिक वोटिंग मशीनों का निरंतर बढ़ती संख्या‍ में प्रयोग किया है। वर्ष 2003 में, सभी राज्जीय निर्वाचन तथा उप-निर्वाचन ईवीएम का इस्तेमाल करके आयोजित किए गए। इससे प्रोत्साहित होकर आयोग ने वर्ष 2004 में कराए जाने वाले लोक सभा निर्वाचन के लिए केवल ईवीएम का ही प्रयोग करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया। इस निर्वाचन में दस लाख से अधिक ईवीएमों का प्रयोग किया गया।

निर्वाचनों का पर्यवेक्षण करना, निर्वाचन प्रेक्षक

यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रचार अभियान निष्पक्ष रूप से संचालित किया जाए तथा लोग स्वतंत्रतापूर्वक अपनी इच्छा से मतदान कर सकें, निर्वाचन आयोग बड़ी संख्या में प्रेक्षकों को नियुक्त करता है। निर्वाचन व्यूय प्रेक्षक उस धनराशि पर अंकुश रखते हैं जो प्रत्येक अभ्यर्थी और दल निर्वाचन में खर्च करता है।

मतों की गणना

मतदान समाप्त‍ होने के पश्चात, निर्वाचन आयोग द्वारा नियुक्त रिटर्निंग अधिकारियों तथा प्रेक्षकों के पर्यवेक्षण में मतों की गणना की जाती है। मतों की गणना समाप्त होने के पश्चात रिटर्निंग अधिकारी उस अभ्यर्थी के नाम की विजेता के रूप में घोषणा करते हैं जिसे सर्वाधिक संख्या में मत प्राप्त हुए हों, तथा संबंधित सदन के निर्वाचन-क्षेत्र द्वारा निर्वाचित घोषित करते हैं।
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